सूर्य surya ki visheshata
सूर्य
सौरमंडल का प्रधान सूर्य को माना जाता है ।
सौरमंडल के समस्त ऊर्जा और प्रकाश का स्रोत सूर्य है ।
सूर्य की ऊर्जा नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) के कारण उत्पन्न होती है ।
सूर्य अपने अक्ष पर पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर घूमता है ।
सूर्य पृथ्वी से 3 लाख 30 हजार गुना भारी है ।
सूर्य की आयु 5 बिलियन वर्ष है । सूर्य हमारी पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है ।
सूर्य द्वारा ऊर्जा देते रहने का अनुमानित समय 10 पर घात 11 वर्ष है ।
सूर्य का आंतरिक दीप्तिमान सतह प्रकाशमंडल कहलाता है ।
सूर्य हमारी पृथ्वी से 14.96 करोड़ किमी॰ दूर है ।
सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश आने में 8 मिनट 26.6 सेकेंड समय लगता है ।
प्रकाश की गति 300000000 मीटर/सेकेंड है ।
सूर्य हमारी मन्दाकिनी दुग्धमेखला के केंद्र से लगभग 30,000 प्रकाश वर्ष दूर है ।
सूर्य 250 किलो मीटर/सेकेंड की गति से 25 करोड़ वर्ष में दुग्धमेखला के केंद्र के चारो ओर नाभिकीय परिक्रमा करता है । इस अबधि को ब्रह्मांड वर्ष या कास्मिक वर्ष कहते हैं ।
सूर्य का मध्य भाग 25 दिन में और ध्रुवीय भाग 35 दिन में एक घूर्णन करता है । सूर्य का व्यास 13 लाख 92 हजार किमी है और यह पृथ्वी के व्यास का लगभग 110 गुना है ।
हमारी पृथ्वी को सूर्य के ताप का 2 अरबवा भाग ही मिलता है ।
सूर्य के रासायनिक संरचना में हाइड्रोजन 71%, हीलियम 26.5% एवं अन्य तत्व 2.5% होता है
सूर्य के बाहरी सतह का तापमान 6000० C है
सूर्य के केंद्रीय भाग 'क्रोड' Crore)का तापमान 1.5 *10 7 ॰C है ।
उत्तरी ध्रुब पर सौर ज्वाला को औरोरा बोरियलिस कहा जाता है ।
दक्षणी ध्रुब पर सौर ज्वाला को औरोरा औस्ट्रेलिस कहा जाता है ।
सूर्य से प्रसारित होने वाले परवर्तित प्रकाश को अल्बिडो कहा जाता है
सूर्य ग्रहण के समय जो सूर्य का भाग दिखाई देता है ,उसे कोरोना या किरीट कहते हैं । कोरोना का तापमान 2700,000 ॰ C होता है । कोरोना को सूर्य का मुकुट कहा जाता है ।
जब पूर्ण सूर्य ग्रहण की स्थिति उत्पन्न होती है ,तब हमारी पृथ्वी को प्रकाश सूर्य के कोरोना से ही प्राप्त होता है
सूर्य के कोरोना से बाहर की ओर प्रवाहित होने वाली प्रोटोन की धाराओं को सौर पवन कहते हैं
सूर्य में स्थित काले धब्बों का एक पूरा चक्कर 22 वर्षों में होता है ,पहले के 11 वर्षों में ये धब्बे बढ़ते हैं , और बाद के 11 वर्षों में ये धब्बे घटते हैं ।
सूर्य में चमकीले धब्बे को प्लेजेस कहतें हैं जबकि काले धब्बे को सौर कलंक कहा जाता है ।
सूर्य की बाहरी पवन को संवाहनिय मेखला कहा जाता है ।
सूर्य की परिभ्रमन गति के कारण सौर्यिक पवने सर्पीलाकार चलती है ।
टिप्पणियाँ